Sukrat biography in hindi 2022 | महान दार्शनिक सुकरात की कहानी

Sukrat biography in hindi: महान दार्शनिक सुकरात (socrates), जिसे हम सुकरात के नाम से जानते हैं। सुकरात को यह नाम अरबों ने दिया था। सुकरात का जन्म आज से लगभग 2500 साल पहले एथेन्स में हुआ था। एथेंस यूनान का एक समृद्ध राज्य था। सुकरात के माता पिता बहुत गरीब थे। पिता मूर्तियां बनाने का काम करते थे। बालक सुख रात भी पिता के काम में थोड़ी बहुत मदद करता रहता था। घर में जब भोजन के भी लाले थे, तब अच्छे कपड़ों और पढ़ने लिखने का तो सवाल ही नहीं उठता। 

सुकरात का बचपन (Socrates’ childhood)

परन्तु सुकरात को बचपन में सीखने की और बहुत कुछ जानने की ललक थी। संयोग की बात एक धनी व्यक्ति ने बालक सुकरात के इस गुण को परख लिया। उसने सुकरात की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की। सोचा होगा की पढ़ लिखकर कुछ ना कुछ कर ही लेगा। जीवन में सहयोगियों का बड़ा महत्त्व है। कुछ सहयोग ऐसे होते हैं कि वे व्यक्ति की जीवन धारा को प्रसिद्धि के मार्ग की ओर मोड़ देते हैं। सुकरात का मिलना भी ऐसा ही सुखद संयोग था। समुचित शिक्षा से सुकरात की बुद्धि चमक उठीं। वह हर बात को गहराई से सोचने लगा और हर चीज़ का अर्थ खोजने लगा। थोड़ा बड़ा होते ही वह विद्वानों से तर्क वितर्क करने लगा। जब वे कोई बात कहते तो सुकरात उनसे प्रश्न पर प्रश्न करते हुए बाल की खाल निकालने लगता। उन दिनों एथेंस में ऐसे तथाकथित विद्वानों की कमी न थी, जो तरह तरह के विषयों की जानकारी का ढोंग करके आम लोगों पर अपनी विद्वता का सिक्का जमाने का प्रयत्न करते थे। सुकरात के प्रश्न उन्हें चुनौती लगती, वे निरुत्तर हो जाते और बौखला उठते। आम लोग विशेषकर नवयुवक। इस बहस का आनंद उठाते और सुकरात के प्रति प्रशंसा से भर उठते। वे सुकरात के प्रति ईर्ष्या से भर उठे। सुकरात की प्रसिद्धि दिनोंदिन बढ़ने लगी। (Sukrat biography in hindi)

सुकरात के विचार (socrates quotes in hindi):

सुकरात एक ऊंची जगह खड़े हो जाते और अपने आसपास खड़े लोगों से किसी विषय को लेकर प्रश्न करते। वे उत्तर देते तो उसी उत्तर के आधार पर बात आगे बढ़ती है और इस प्रकार सवाल जवाब का एक सिलसिला शुरू हो जाता। वह हर प्रश्न का उत्तर देता, अंत में निष्कर्ष के रूप में सच्चाई सामने आ जाती। लोगों को इस बात की प्रसन्नता होती की सच्चाई के उद्घाटन में उनका भी हाथ है। श्रोताओं में अधिकतर सुकरात के हम उम्र नव युवक होते। देखते ही देखते सुकरात नवयुवकों का चहेता नेता बन गया। सुकरात की बातचीत के विषय थे ईश्वर, सृष्टि, धर्म, राजा, प्रशासन, राजधर्म, प्रजाधर्म आदि। साधारण से लोग इन विषयों पर बात करते कतराते। क्योंकि इनके विषय में निश्चित रूप से कहना कठिन था। सुकरात उनसे कहता ईश्वर एक है। ईश्वर के स्थान पर नाना प्रकार के देवी देवताओं को पूछना नासमझी है। इससे बुद्धि भ्रमित होती है।

sukrat quotes in hindi:

सच्चा धर्म है अपनी बुद्धि से काम लेना और अपने प्रति परिवार के प्रति समाज और देश के प्रति कर्तव्य का पालन करना। देश व्यक्ति से बढ़कर है। राजा से भी बढ़कर। हमारा पहला कर्तव्य है कि हम देशभक्त हूँ। राजा तो प्रशासक है। वह ईश्वर नहीं है। जैसा कि हमारे मन में बैठा दिया गया है। राजा तभी तक अच्छा है। जब तक वह की जनता की ईमानदारी से सेवा करता है। हाँ, जनता का भी कर्तव्य है कि वह भलाई के कामों में राजा का सहयोग दें। सांसारिक सुखों के पीछे मत दौड़ें, धर्म की राह पर चलें, ज्ञान की कमाई करे ताकि सत्य के दर्शन हो आदि आदि। उसकी बातें सुनकर लोग उससे प्रभावित हुए बिना न रहते। सुकरात ज्ञान का भंडार था, परंतु वह लोगों पर अपने ज्ञान का आतंक नहीं जमाता था। वह कहता था कि किसी बात को इसलिए स्वीकार मत कर लो कि वह किसी बड़े आदमी ने कही है। तुम स्वयं उसके बारे में गहराई से सोच कर उसके गुण अवगुण की परख करो। अच्छी लगती है, तो मानो अन्यथा नहीं। विज्ञान का संग्राहक था तो निर्लोभ भाव से उसका वितरण भी करता था। यही कारण है कि शिष्य परंपरा बढ़ती रही। उसके बाद उसके शिष्य प्लेटो ने और प्लेटों के बाद उसके शिष्य ने उसके विचारों को आगे बढ़ाया। सुकरात, और अरस्तू तीनों की गिनती विश्व के महान दार्शिनिकों में होती है। 

Sukrat biography in hindi:

समय अंतराल के बावजूद उनके विचार आज भी मान्य है। वह आजीवन ज्ञान का उपासक रहा। वह न धन के पीछे भागा न यश के। उसकी पत्नी बहुत क्रोधी स्वभाव की थी। परन्तु उसने अपनी पत्नी की क्रोध भरी हरकतों को नितांत सहजता से लिया। संतोषी इतना था कि एक विदेशी राजा ने उसे लालच देकर अपने दरबार में बुलाना चाहा, परंतु उसने विनम्रतापूर्वक यह कहकर इंकार कर दिया की मैं आपकी कृपा के ऋण का भार नहीं उठा सकता। मैं अपने देश में ही सुखी हूँ। दो वक्त की रोटी मिल जाती है। झड़ने के पानी से प्यास बूझ जाती है। तन ढकने के लिए एक लबादा काफी है। सच तो यह है कि उसे एथेंस और एथेन्स की जनता से असीम प्यार था। जीवन के प्रति उसके सवस्थ दृष्टिकोण में धन की या यश की आकांक्षा का कहीं स्थान था। वह सादा जीवन और उच्च विचार की शक्ति का जीता जागता नमूना था।

सुकरात की मृत्यु (Death of Socrates):

एथेन्स का तत्कालीन शासक सुकरात का सम्मान करता था। सुकरात ने सदा उसे प्रजा की भलाई के काम करने की प्रेरणा दी। जब तक पेरिक्लीज़ जीवित रहा सुकरात का जनजागरण चलता रहा, परंतु उसकी मृत्यु के बाद सुकरात के शत्रुओं की बन आई। उन्होंने पेरिक्लीज़ के उत्तराधिकारी क्लिओन के कान भरने शुरू कर दिए। कलीओन घमंडी और अविचारी शासक था। मूर्ख तो वह था ही। उसे सुकरात के स्वतंत्र विचारों में विद्रोह की गंध आई। निरंकुश शासक तो यही जानता है कि जनता सोचे बिचारे बिना उसकी हर बात प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार कर लें। अतः सुकरात उसकी आँखों में कांटे की तरह खटकने लगा। होते होते यह हुआ कि उसे सदा के लिए अपनी राह से हटाने का कुचक्र रचा गया। उस पर आरोप लगाया गया कि तुम एथेंस के नवयुवकों को पथभ्रष्ट कर रहे हो। उन्हें अधर्म के मार्ग पर ले जा रहे हो और शासन के विरुद्ध भड़का रहे हो। इस मिथ्या आरोप के साथ सुख रात को बंदीगृह में डाल उस पर मुकदमा चलाया गया। न्यायाधीशों ने कहा यदि तुम अपना अपराध स्वीकार कर क्षमा मांग लो। तो तुम्हें मुक्त कर दिया जायेगा। जीवन मृत्यु का अर्थ समझने वाले, सदा सत्य के पक्ष की रक्षा करने वाले और अपने देश और देशवासियों से प्यार करने वाले सुकरात ने शासक के दबाव में आकर न्याय की हत्या करने वाले न्यायाधीशों के मिथ्या आरोपों को स्वीकार नहीं किया। 

(Sukrat biography in hindi) उन्होंने सुकरात को मृत्युदंड सुना दिया। देश की तत्कालीन प्रथा के अनुसार मृत्युदंड के अपराधी को निश्चित तिथि को जहर का प्याला पिला दिया जाता था। सुकरात ने खुशी से जहर पीना स्वीकार कर लिया। उस दिन शुक्रवार था। जेल की कोठरी में उस समय सुकरात के पास उसके दो परम मित्र प्लेटों और कीटों मौजूद थे। जेलर भी सुकरात का प्रशंसक था। जेलर को विश्वास में लेकर सुकरात को जेल से भगा ले जाने की योजना बनाई, परंतु सुकरात ने दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया, बोला? यह देश के कानून का उल्लंघन होगा। कानून का उल्लंघन करके मैं देश का अपमान नहीं करूँगा। सत्य की रक्षा करना ही मेरा धर्म रहा है। मृत्यु भय से मैं यहाँ धर्म नहीं करूँगा। वाकई मेरा शरीर ही तो कब्र में दफन रहेगा। आत्मा तो तुम लोगों के साथ रहेंगी। आत्मा ही एक अमरसत्य है इसलिए मेरी मृत्यु के अवसर पर हंसो और खुशियां मनाओ तथा मुझे भी शांति से मरने दो। निश्चित समय पर जेलर ने कांपते हाथों से सुकरात को जहर का प्याला थमा दिया। रोते रोते बोला महोदय? मैं जानता हूँ कि आप निर्दोष है। परन्तु मैं विवश हूँ। मुझे क्षमा कर देना।

 सुकरात ने उसे धीरज देते हुए कहा। भाई मैं तुम से रुष्ट क्यों होने लगा? तुम तो अपने कर्तव्य का पालन कर मेरे ही विचारों का समर्थन कर रहे हो। यह कहकर सुकरात ने जहर का प्याला हाथ में लिया और प्रसन्नतापूर्वक घूंट घूंट पीने लगा। यह देख वहाँ उपस्थित लोगों का हृदय हाहाकार कर उठा। जहर ने धीरे धीरे सूख रहा था पर अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया। मैंने अपने पड़ोसी से एक मुर्गा उधार लिया था। तुम उसका दाम चुका देना। यह कहकर उसने चादर से मुँह ढक लिया। उसके बाद वह कुछ देर निष्पंद पड़ा रहा। कुछ ही क्षण बाद उसका शरीर एकाएक  आया और उसके बाद सब कुछ शांत। सुकरात की आत्मा उसका शरीर छोड़ कर उस परम सत्ता में विलीन हो गई, जिसका वह अंश थी। अंश पूर्ण में मिलकर पूर्ण हो गया। और इस प्रकार एक महान दार्शनिक और सत्य का अन्वेषक अन्याय की बलिवेदी पर चढ़ गया। निवेशकों का पराया ऐसा ही अंत हो रहा है। परन्तु एक निश्चित है कि वे अपने मृत्यु में भी उतने ही महान है जितनी कि जीवन में। वे मरकर भी अमर हो जाते हैं। 

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